Breaking News : इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह मामले में कोर्ट की निगरानी में सर्वे कराने की मांग स्वीकृत कर ली है!
Video Source: News18 India
कोर्ट ने हिंदू पक्ष की याचिका को माना
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह विवाद मामले में कोर्ट की निगरानी में स्थल सर्वेक्षण की अनुमति दे दी है। यह आदेश हिंदू पक्ष की उस याचिका के बाद आया, जिसमें उन्होंने अदालत से एडवोकेट-कमिश्नर के जरिए स्थल का निरीक्षण कराने की मांग की थी।
हिंदू पक्ष के वकील ने दी जानकारी
हिंदू पक्ष के वरिष्ठ अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन ने बीबीसी से बातचीत में बताया कि कोर्ट ने एडवोकेट-कमिश्नर की नियुक्ति को मंजूरी दी है। उन्होंने आगे कहा कि:
“अब अगली सुनवाई 18 दिसंबर को निर्धारित है। उस दिन यह तय किया जाएगा कि सर्वेक्षण कौन करेगा, और रिपोर्ट दाखिल करने की अंतिम तिथि क्या होगी।”
क्या है मामला?
कृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह विवाद मथुरा स्थित उस स्थल से जुड़ा है, जहां हिंदू पक्ष का दावा है कि भगवान श्रीकृष्ण का जन्मस्थान है। उनका आरोप है कि शाही ईदगाह मस्जिद उस पवित्र भूमि पर बनी हुई है।
हिंदू समुदाय के कई समूहों ने अदालत में याचिका दायर कर यह मांग की है कि उन्हें विवादित स्थल पर पूजा करने का अधिकार दिया जाए। दूसरी ओर, मुस्लिम पक्ष इस दावे को खारिज करता आया है।
लंबित हैं कई याचिकाएं
इलाहाबाद हाईकोर्ट में इस विवाद से जुड़ी कई याचिकाएं अभी लंबित हैं। इन सभी में एक जैसा ही दावा है – कि शाही ईदगाह मस्जिद मूल रूप से हिंदू आस्था के स्थल पर बनी है और वहां पूजा की अनुमति दी जानी चाहिए।
कोर्ट मॉनिटरिंग सर्वे क्यों है अहम?
इस सर्वे को कोर्ट की निगरानी में कराना इसीलिए महत्वपूर्ण माना जा रहा है क्योंकि इससे मामले में तथ्यात्मक स्थिति की पुष्टि की जा सकेगी। इससे यह भी स्पष्ट हो सकता है कि क्या ईदगाह की वर्तमान संरचना विवादित स्थल पर निर्मित है, और क्या वहां कोई पुरातात्विक अवशेष या धार्मिक चिह्न मौजूद हैं।
अगले कदम की प्रतीक्षा
अब सभी की निगाहें 18 दिसंबर की सुनवाई पर टिकी हैं। उस दिन अदालत यह तय करेगी:
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कौन अधिकारी सर्वे करेगा?
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सर्वे रिपोर्ट कितने दिन में प्रस्तुत होगी?
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प्रक्रिया की पारदर्शिता कैसे सुनिश्चित की जाएगी?
कृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह मामला एक संवेदनशील और ऐतिहासिक विवाद है, जो वर्षों से न्यायालयों में लंबित है। इलाहाबाद हाईकोर्ट का यह ताज़ा आदेश मामले में नए मोड़ की ओर इशारा करता है। अब यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि सर्वे के परिणाम क्या सामने लाते हैं और वे न्यायिक प्रक्रिया को किस दिशा में ले जाते हैं।