Breaking News: गृह मंत्री अमित शाह ने लोकसभा में प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री और मंत्रियों को पद से हटाने से जुड़े तीन बड़े विधेयक पेश कर दिए।
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मीडिया के अनुसार, मोदी सरकार ने बुधवार को लोकसभा में ऐतिहासिक कदम उठाते हुए प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री जैसे शीर्ष संवैधानिक पदों को लेकर सख्त प्रावधान वाला कानून पेश कर दिया। गृह मंत्री अमित शाह ने संसद में तीन अहम विधेयक पेश किए, जिनके तहत यदि प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री या मंत्री किसी गंभीर आपराधिक मामले में गिरफ्तार होते हैं और 30 दिन से अधिक हिरासत में रहते हैं, तो 31वें दिन वे स्वतः अपने पद से हटा दिए जाएंगे।
तीन विधेयक जो लोकसभा में पेश हुए
सरकार ने एक साथ तीन बिल संसद में रखा है –
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संविधान (130वां संशोधन) विधेयक 2025 – केंद्र और राज्य सरकारों पर लागू।
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जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन (संशोधन) विधेयक 2025 – विशेष रूप से जम्मू-कश्मीर पर लागू।
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केंद्र शासित प्रदेश (संशोधन) विधेयक 2025 – यूनियन टेरिटरीज के लिए प्रावधान।
इन विधेयकों में संविधान के अनुच्छेद 75 और 164 में बदलाव करने का प्रस्ताव रखा गया है।
नया नियम क्या कहता है?
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अगर प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री या कोई मंत्री गंभीर आपराधिक मामले में गिरफ्तार होकर 30 दिन तक हिरासत में रहता है, तो 31वें दिन उसका पद स्वतः समाप्त हो जाएगा।
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जिन अपराधों में कम से कम 5 साल या उससे अधिक की सजा का प्रावधान है, उन पर यह नियम लागू होगा।
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अगर आरोपी नेता को कोर्ट से जमानत मिल जाती है, तो वह दोबारा पद संभाल सकता है।
गिरफ्तारी पर तुरंत लागू होगा नियम
अभी तक विपक्ष नेताओं की गिरफ्तारी के बाद इस्तीफे की मांग करता रहा है, लेकिन कानूनी तौर पर इस्तीफा अनिवार्य नहीं था। नए कानून के बाद यदि कोई नेता गिरफ्तार होता है और 30 दिन तक जेल में रहता है तो स्वतः पद छिन जाएगा।
दोषमुक्त होने पर दोबारा पद पाने का मौका
सरकार ने यह भी स्पष्ट किया है कि यदि प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री या मंत्री कोर्ट में निर्दोष साबित हो जाते हैं, तो उन्हें दोबारा नियुक्ति दी जा सकती है। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि ईमानदार नेताओं को न्याय मिलने पर उनका राजनीतिक करियर बाधित न हो।
मौजूदा कानून में क्या है प्रावधान?
वर्तमान में संविधान के अनुच्छेद 361 के तहत केवल राष्ट्रपति और राज्यपाल को गिरफ्तारी से छूट है। प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री और मंत्रियों पर ऐसा कोई स्पष्ट कानून नहीं है।
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मौजूदा नियम के मुताबिक, अगर किसी नेता को दो साल से अधिक की सजा मिलती है तो उसकी संसद या विधानसभा सदस्यता रद्द हो जाती है।
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इसका मतलब यह हुआ कि वह प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री नहीं रह सकता।
लेकिन गिरफ्तारी और हिरासत के मामले में अभी तक ऐसा कोई प्रावधान नहीं था।
अगर यह कानून पहले होता तो केजरीवाल को क्या झेलना पड़ता?
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी के समय विपक्ष ने इस्तीफे की मांग की थी, लेकिन उन्होंने पद नहीं छोड़ा। मामला कोर्ट पहुंचा तो अदालत ने साफ कहा कि ऐसा कोई कानून नहीं है जिससे उन्हें पद छोड़ने के लिए बाध्य किया जा सके।
अगर नया कानून उस समय लागू होता, तो केजरीवाल को 30 दिन की हिरासत के बाद 31वें दिन पद छोड़ना पड़ता।
सरकार का तर्क – ईमानदारी और पारदर्शिता की दिशा में कदम
केंद्र सरकार का कहना है कि इन विधेयकों का उद्देश्य राजनीति में नैतिकता और पारदर्शिता लाना है। अक्सर गंभीर आरोपों के बावजूद नेता सत्ता में बने रहते हैं, जिससे जनता का विश्वास डगमगा जाता है। नया कानून सुनिश्चित करेगा कि सरकार का नेतृत्व केवल वे लोग करें जिन पर जनता का भरोसा कायम रह सके।
मोदी सरकार का यह फैसला भारतीय राजनीति में बड़ा बदलाव ला सकता है। अब शीर्ष संवैधानिक पदों पर बैठे नेताओं के लिए कानून के प्रति जवाबदेही और जिम्मेदारी और भी कड़ी हो जाएगी। अगर ये विधेयक संसद से पारित हो जाते हैं तो यह देश की राजनीति में पारदर्शिता, जवाबदेही और नैतिक शासन का नया अध्याय साबित होगा।