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गर्भगृह में प्रवेश करते ही श्रीरामलला की मूर्ति की बदल गई आभा!

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Breaking News : अरुण योगीराज ने कहा जब मैंने मूर्ति बनाई तब वो अलग थी। गर्भगृह में जाने के बाद और प्राण-प्रतिष्ठा के बाद वो अलग हो गई!

Video Source: Aaj Tak

मीडिया के अनुसार, अयोध्या में स्थित रामलला की मूर्ति, जो देशव्यापी मूर्तिकला कला के माम्य अरुण योगीराज द्वारा रची गई है, का अनुष्ठान हो गया है। उन्हें यह श्रेय मिला है कि उन्होंने रामलला की मूर्ति का निर्माण किया, और पहले व्यक्ति बने जिन्होंने उसे देखा। उन्हें अब इस मूर्ति के साथ कई प्रश्नों का सामना करना पड़ रहा है, और इस पर उन्होंने खुलासा किया है अपने इंटरव्यू में।

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अरुण योगीराज ने मीडिया से बातचीत करते हुए कहा है कि इस कार्य को उन्होंने अपने बल्ले से नहीं किया, बल्कि भगवान ने उनसे इसे करवाया है। उन्होंने बताया कि जब वह रामलला की मूर्ति को बना रहे थे, तो रोज़ वह उससे बातचीत करते थे। वह यह कहते थे, ‘प्रभु, मुझे सबसे पहले दर्शन दे दो।’ योगीराज ने कहा कि जब मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा हो गई, तो उन्हें एहसास हुआ कि वह मूर्ति उनके द्वारा नहीं बनाई गई है। उनका दृष्टिकोण बदल गया था। उन्होंने इसके बारे में लोगों को बताया कि उन्हें ऐसा विश्वास हो रहा था कि मूर्ति उनके द्वारा नहीं बनाई गई है। उन्होंने स्वीकार किया कि अगर वह दुबारा प्रयास करें, तो ऐसी मूर्ति कभी नहीं बना सकते।

उन्होंने कहा, ‘जब मैंने मूर्ति बनाई, तब वह अलग थी। गर्भगृह में प्रवेश करने के बाद और प्राण प्रतिष्ठा के बाद, वह अलग हो गई। मैंने 10 दिन गर्भगृह में बिताए। एक दिन जब मैं बैठा था, मुझे अंदर से लगा कि यह मेरा काम नहीं है। मैं उन्हें पहचान नहीं पाया। अंदर जाते ही उनकी आभा बदल गई। मैं उसे अब दोबारा नहीं बना सकता। जहाँ तक छोटे-छोटे विग्रह बनाने की बात है वो बाद में सोचूँगा। “रामलला की मूर्ति के साथ इंटरव्यू के दौरान, अरुण योगीराज को नंगे पाँव बैठते हुए देखा गया। उन्होंने बताया कि राम को दुनिया को दिखाने से पहले, उन्हें यह मानना था कि मूर्ति में राम हैं। उन्होंने कहा, ‘मैं दुनिया को दिखाने से पहले उनके दर्शन करना चाहता था। मैं उन्हें कहता था – दर्शन दे दीजिए प्रभु।’ इस प्रकार, भगवान ने मेरी जानकारी जुटाने में स्वयं मदद की। किसी दीपावली के दिन, मुझे कुछ तस्वीरें मिलीं जो 400 साल पहले की गई थीं। हनुमान जी भी हमारे दरवाजे पर आकर गेट खटखटाते थे, सब देखते थे, और फिर चले जाते थे।